पाटीगणितम् में 'तीन का नियम': Difference between revisions
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Latest revision as of 18:19, 19 September 2023
तीन का नियम, एक गणितीय नियम है जो हमें अनुपात के आधार पर समस्याओं को हल करने की अनुमति देता है। तीन के नियम को संस्कृत में त्रैराशिक के नाम से जाना जाता है।
श्लोक
आद्यन्तयोस्त्रिराशावभिन्नजाती प्रमाणमिच्छा च ।
फलमन्यजातिमध्ये तदन्त्यगुणमादिना विभजेत् ॥४३॥
अनुवाद
(समस्याओं को हल करने में) तीन के नियम में, तर्क (प्रमाण) और मांग (इच्छा), जो एक ही संप्रदाय के हैं, को पहले और आखिरी स्थान पर स्थापित किया जाना चाहिए; फल (फल), जो एक अलग संप्रदाय का है, को बीच में रखा जाना चाहिए।[1] (ऐसा करने पर) कि (मध्यम मात्रा) को अंतिम मात्रा से गुणा करने पर पहली मात्रा से विभाजित किया जाना चाहिए।
उदाहरण
यदि साढ़े दस पण में 1 पल और 1 कर्ष चंदन प्राप्त होता है, तो 9 पल और 1 कर्ष (समान गुणवत्ता का चंदन) कितने में प्राप्त होगा?
यहाँ
प्रमाण - 1 पल और 1 कर्ष = या पल
हम जानते हैं 4 कर्ष = 1 पल ।
फल= या पण
इच्छा = 9 पल और 1 कर्ष = या पल
इन मात्राओं को नियम के निर्देशानुसार लिखने पर हमे प्राप्त परिणाम इस प्रकार है
| प्रमाण | फल | इच्छा |
| 5
4 |
21
2 |
37
4 |
फिर नियम लागू करने पर वांछित परिणाम मिलता है
पण
यह भी देखें
संदर्भ
- ↑ (शुक्ला, कृपा शंकर (1959)। श्रीधराचार्य की पाटीगणित। लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय. पृष्ठ-22 -23 ।)"Shukla, Kripa Shankar (1959). The Pāṭīgaṇita of Śrīdharācārya. Lucknow: Lucknow University. p.22-23.