प्रेरणिक प्रभाव

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जब कार्बनिक यौगिकों के कार्बन परमाणु और भिन्न विद्युत् ऋणात्मकता वाले परमाणु या समूह की उपस्थिति के कारण होने वाला इलेक्ट्रॉन विस्थापन को प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। यह प्रभाव अणु मैं उपस्थित शृंखला के सभी C परमाणुओं में संचरित होता है। यह प्रभाव स्थायी होता है। किन्तु अन्य प्रभावों की तुलना में दुर्बल होता है। इसको एक ऐसे डैश (----) से प्रदर्शत किया जाता है।

जिन परमाणु या समूहों की विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में अधिक होती है, वे ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से दर्शाये जाते हैं तथा जिनकी विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में कम होती है, वे धनात्मक प्रेरणिक (+I) प्रभाव वाले समूह होते हैं। एक आक्रमण अभिकर्मक की उपस्थिति में एक आबंधित परमाणुओं में से एक के लिए कई आबंधों के पाई-इलेक्ट्रॉन युग्म के पूर्ण स्थानांतरण को इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव कहा जाता है।

यदि दो समान परमाणुओं के बीच सहसंयोजक बंध बना हो तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं की बीचों-बीच वितरित रहता है। जिसके कारण ध्रुवता उत्पन्न नहीं होती और यौगिक अध्रुवीय हो जाता है।

उदाहरण

H-H, Cl-Cl, Br-Br, F-F

बंध से जुड़े अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋणआवेश उत्पन्न हो जाता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु पर (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धनआवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है।

H-F

H- कम विद्युत ऋणात्मक (दुर्बल)

F- अधिक विद्युत ऋणात्मक (प्रबल)

धनात्मक  प्रेरणिक प्रभाव (+I)

इसे इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव भी कहते हैं। वे समूह जो कार्बन श्रृंखला को इलेक्ट्रॉन युग्म दान करते हैं , +I समूह कहलाते हैं और ये समूह +I प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इलेक्ट्रॉन दान करने के कारण इन समूहों पर आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है।